Thursday 1 February 2024

प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों की आर्थिक संघर्ष: पश्चिम बंगाल की स्थिति

   पश्चिम बंगाल के शिक्षा के क्षेत्र में, एक अदृश्य लड़ाई ज़ारी है, जो कभी-कभी अनदेखा रह जाता है - वह है प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों की आर्थिक कठिनाइयाँ। 



 मैं एक गणित शिक्षक के रूप में सात वर्षों से काम कर रहा हूं, और मैं स्वयं देख रहा हूँ कि प्राइवेट शिक्षककर्मिंयों  की किस तरह की जीवनशैली है, और यह समस्या पश्चिम बंगाल के कई निजी संस्थानों में ही दिखाई देती है। इस ब्लॉग में, हम शिक्षकों के सामने आने वाली आर्थिक चुनौतियों को उजागर करने की कोशिश करूँगा, जिनमें वे आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता की कमी के बिना हैं।

शिक्षकों की समस्याएं:

शिक्षक, जिन्हें भविष्य का  निर्माता कहा जाता हैं, अपने समर्पण और गरीबी के जाल में फंसे हैं। उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, उन्हें अपर्याप्त वेतन और लचर आर्थिक प्रावधानों का सामना करना पड़ रहा है, जो उनके जीवन को अस्थिर बनाये जा रहा हैं । 

वेतन की असमानता और वृद्धि की मुश्किलें:

प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों के वेतन और उनके काम के महत्व के बीच बड़ा अंतर है। जबकि वे बिना थके बच्चों को पढ़ाने में अपना समय और मेहनत लगाते हैं । उनकी वेतन अक्सर कम होता है, जो उनके योगदान की मूल्य को परिचायक नहीं करता। कई स्कूलों में तो शिक्षकों का वेतन सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन से भी आधा हैं । प्राइमरी विभाग में तो यह वेतन ₹3000 तक है जो एक शिक्षक के लिए गाली के समान ही हैं । इसके साथ ही, वेतन में वृद्धि की अनियमितता और अपर्याप्तता सिर्फ शिक्षकों के जीवन की गुणवत्ता पर ही  प्रभाव डालती है बल्कि वास्तव में उनके शिक्षण क्षमता पर भी असर डालती है। जीवन के खर्च झेलने में संघर्ष करते हुए, शिक्षकों को अधिक चिंता और विचलन का सामना करना पड़ता है, जो उनकी शिक्षा में गुणवत्ता प्रदान करने की क्षमता को कम करता है - यह छात्रों और शैक्षणिक प्रणाली के लिए नुकसानकारी हैं जिसे यह सरकार, यह समाज और वे कुलीन लोग जिनके सबसे ज्यादा बच्चे ऐसे स्कूल में पढ़ते हैं, समझ नहीं पा रहे हैं । 

 कार्रवाई का आवाहन:

प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों की आर्थिक समस्याओं को समाधान करने के लिए संयुक्त प्रयास और संवाद की आवश्यकता है। इसे स्कूल प्रशासन, नीति निर्माताओं, और समुदाय को मान्यता और सुधार के लिए उनके साथ आगे बढ़ने की जरूरत है, वर्ना आने वाली पीढ़ियों की भविष्य एक शून्य की और चली जायेगी । 

सुधार के लिए सुझाव:

1. समान भुगतान: स्कूलों को शिक्षकों के समर्पण और विशेषज्ञता के अनुरूप न्यायसंगत और प्रतिस्पर्धी वेतन को प्राथमिकता देनी चाहिए। नियमित और पारदर्शी वेतन वृद्धि को लागू किया जाना चाहिए ताकि जीवन की लागत और मुद्रास्फीति के साथ कदम मिलाया जा सके।

2. व्यापक लाभ: संस्थानों को आवश्यक लाभ, जैसे कि स्वास्थ्य बीमा, नियमित योजनाएं, और नौकरी की सुरक्षा प्रदान करने चाहिए, ताकि शिक्षकों की कल्याण सुनिश्चित किया जा सके।

3. समर्थन और जागरूकता: शिक्षकों के साथ, उनके लोभी समूहों और नीति निर्माताओं को समर्थन करने और प्रणालियों में परिवर्तन लाने के लिए अपनी आवाज को मजबूत करना होगा, जो शिक्षकों के कल्याण को प्राथमिकता देता है।

संबंधित अनुमान:

पश्चिम बंगाल में निजी स्कूलों में शिक्षकों की आर्थिक असुरक्षा सिर्फ स्थानीय समस्या नहीं है - यह हमारे शैक्षणिक प्रणाली की बुनियाद को भी कमजोर करने वाले व्यवस्थाओं का एक परिणाम है। हम प्रगति और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो हमें कल के शिक्षकों को भूलने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, और हमें साझेदारी में काम करना चाहिए ताकि उनके योगदान को सही रूप से मान्यता, मूल्यांकन, और सुरक्षा प्राप्त हो। संयुक्त प्रयास और अथक संघर्ष के माध्यम से, हम एक उज्ज्वल भविष्य की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं - एक ऐसे भविष्य में, जहां हर शिक्षक को वह गर्व, सम्मान, और आर्थिक सुरक्षा मिले जो उसे सही रूप से योग्य है।

   संघर्ष और साझेदारी के माध्यम से, हम एक समृद्ध भविष्य की ओर अग्रसर हो सकते हैं - एक भविष्य जहां हर शिक्षक को उसकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए संविधानिक और सामाजिक समर्थन प्राप्त हो, और जहां शिक्षकों के योगदान को महत्वपूर्ण रूप से मान्यता और सम्मान दिया जाए।

   मिलकर समस्याओं का सामना करने और उन्हें हल करने के लिए, हम शिक्षा के क्षेत्र में सुधार कर सकते हैं और एक समर्थ और समर्पित शिक्षा समुदाय का निर्माण कर सकते हैं, जो हर विद्यार्थी को सशक्त और सक्षम बनाने में सहायता करता है। इस प्रकार, हम एक समृद्ध और समर्थ समाज की दिशा में प्रगति कर सकते हैं, जहां हर शिक्षक अपने क्षमताओं के साथ सम्मान और समर्थन प्राप्त करता है।

Monday 11 March 2019

भारत का चुनावी लोकतंत्र - एक महापर्व या बहुत बड़ा धंधा

      2019 के आम चुनाव का शंखनाद हो  चुका हैं । सब इसे लोकतंत्र का महापर्व कह कर स्वागत कर रहें हैं और इसके रंग में रंगने को तैयार हैं । मैं भी स्वागत कर रहा हूँ । इस वर्ष का आम चुनाव कई मामलों मर विश्व रिकॉर्ड गढ़ने जा रही हैं जिसमे 90 करोड़ मतदाताओं का हिस्सा लेना सबसे बड़ा रिकॉर्ड हैं ।
        भारत में लोकतंत्र हैं, बेशक इसे स्वीकार करते हुए ग़र मैं यह कहूँ कि इसी लोकतंत्र का चुनावी हिस्सा सबसे बड़ा धंधा भी हैं तो शायद आप चौक जाएंगे पर यही वास्तिवकता हैं । अब आप पूछेंगे कि कैसे ? तो चलिए कुछ आंकड़ों को देख लेते हैं फिर आप तय कीजियेगा कि यह चुनावी लोकतंत्र सबसे बड़ा धंधा है या नहीं !
     शुरू करते हैं आज़ादी के बाद हुई पहली चुनाव से ।
1947 के बाद जो पहली राष्ट्रीय सरकार बनी उसके बाद चुनाव 1952 में चुनाव कराने के लिए इस रष्ट्रीय सरकार ने 10 करोड़ की बजट बनाई थी । अब आप सोच लीजिये कि उस समय यह रकम कितनी बड़ी रही होगी ।
खैर वो बात चुनाव खर्च की हैं जिस पर बाद में मैं एक आर्टिकल लिखूंगा । अभी आता हूँ चुनावी धंधा पे ।
   याद कीजिये 2104 का आम चुनाव । गोवा में 2013 में मौजूदा गुजरात के सीएम नरेंद मोदी जी को भाजपा ने प्रधान मंत्री का कैंडिडेट घोषित कर चुका था तब 85 करोड़ 37 लाख का कॉरपरेट फंडिंग हो चुका था । यह घोषित फंडिंग हैं , अघोषित का डेटा तो भगवान ही जानता होगा या फिर वो राजनीतिक दल ।
  अब आते हैं 2014 -15 में । मोदी जी अब प्रधानमंत्री बन चुके हैं । इसके बाद जो कॉरपोरेट फंडिंग होती हैं वो हैं - 1 अरब 77 करोड़ 65 लाख । अब आप कल्पना कीजिये इस राशि का और चौकिये मत । अब आगे बढ़ते हैं । 2016 में नोटबन्दी होती हैं और इसे कालाधन पर सबसे बड़ा प्रहार माना जाता हैं तो इस कालेधन पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जो 2017 तक कॉरपोरेट फंडिंग होती हैं वो हैं- 6 अरब 36 करोड़ 88 लाख । तो गिनते जाइये कि अभी तक कॉरपोरेट ने कितना रुपया इन्वेस्ट कर चुका हैं । उंगली कम पर जाए तो कैलक्यूलेटर लेकर बैठिए और चौकिये मत अंतिम साल का भी पॉलिटिकल पार्टी को कॉरपोरेट फंडिंग जो मिला उसका डाटा भी ज़रा देखते जाइये । यह राशि हैं- 12 अरब 96 करोड़ 05 लाख । मतलब पुछले 3 साल के कुल फंडिंग का लगभग दोगुणा ।
   इस पूरे फंडिंग में सिर्फ भाजपा को जो मिला हैं वो हैं 6 अरब 89 करोड़ 84 लाख रुपया और इसके बदले जो कॉरपोरेट को रियायत मिलती हैं वो हैं करीबन 60 अरब रुपये का, मतलब इन्वेस्टमेंट का करीबन 10 गुणा । तो यह धंधा घाटे का नहीं हैं किसी भी हिसाब से ।
     तो अब आप खुद सोच लीजिये  कि इन पाँच सालों में जो करीबन 23 अरब रुपये का फंडिंग कॉरपोरेट ने की हैं वो यूँ ही नहीं कि होगी उसके बदले वो कितना कमाता होगा इसका उदाहरण आपको मिल ही गया ।
   अब यह भारत का चुनावी लोकतंत्र का महापर्व कहिये और उत्साह मनाइए । हम भी मनाएंगे । अब कर भी क्या कर सकते हैं जब इस सिस्टम का प्रोडक्ट्स बन ही गए हैं तो !
   तो इस गरीब देश मे गरीबी हटाओ का नारा कितना बेईमानी हैं , आप खुद तय कर लीजिए ।
    यब तो सिर्फ फंडिंग हैं पॉलिटिकल पार्टियों का जो बाद में ये कॉरपोरेट ऐंठ कर निकालते हैं ।
     दूरी बात यह  चुनाव कितना महंगा होता हैं इसका  अंदाज़ा आप लगा सकते हैं तो लगा लें ।
आप कहिये कितना हो सकता हैं 100 अरब । नही महाराज हमने भी इसके डेटा पर जानकारी इक्कठा की हैं । 100 खरब रुपये भी कम हैं इस वर्ष के आम चुनाव के लिए । इस पर कल लिखेंगे  फिलहाल उंगली पर जीरो गिनते रहे कि 100 खरब रुपये में कितनी होती हैं ।
   शुक्रिया !! जय हिंद !!
©अनिल के राय

Tuesday 26 September 2017

हैप्पी बर्थडे टू यू मनमोहन सर !!

           
              "हज़ारों ज़बाबों से अच्छी हैं मेरी खामोशी
               न जाने कितनी सवालों की आबरू रख ली |"
ऐसे ये शेर अयाज़ झांसवी का मॉडिफाइड वर्शन है , जिसे किसने मॉडिफाइड किया है वो आप जानते ही हैं और यह  शेर देखते ही आप समझ भी गए   होगे, आज हम किसके बारे में बात करने वाले हैं |
   आज बात करेंगे एक ऐसे ब्यक्ति का जो सिर्फ अपने पढ़ाई के बलबूते पे एक गरीब परिवार से देश का सबसे बड़ा पद पीएम तक पहुचा  | आज बात करेंगे एक ऐसे ब्यक्ति का जिसने देश में लाईसेंसी राज़ ख़त्म कर एक उदारवादी अर्थव्यवथा  दी  | आज बात करंगे ऐसे ब्यक्ति का जिसे जब देश हित के लिए बलि का बकरा बनया गया, बिना कुछ बोले वो अपना बलि चढाने को तैयार हो गए | आज बात करेंगे ऐसे ब्यक्ति का जो सबसे ज़्यादा शिक्षित होते हुए भी उन्हें पोपट कहाँ गया | आज बात करेंगे देश के पहले माइनॉरिटी समुदाएँ से आने वाले पीएम की, पहले सिख पीएम की | सरदार मनमोहन सिंह का |
     आज उनका बर्थडे हैं | तो सबसे पहले उन्हें जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवंम शुबकामनाएं | आपकी उम्र और लम्बी हो |
     सरदार मनमोहन सिंह जी का जन्म पंजाब के गह गाँव में, जो अभी पाकिस्तान का हिसा हैं , २६ सितम्बर १९३२ को  हुआ था |घर में बिजली नहीं थी तो किरोसन में पढ़कर आँखें खराब कर ली पर पढ़ाई नहीं छोड़े और स्कालरशिप के बलबूते ऑक्सफ़ोर्ड तक पहुँच गए और इकोनॉमिक्स में पीएचडी  कर लिए |यूएन तक भी पहुच गए पर दिल्ली स्कूलऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ाने के लिएयूएन से इस्तीफा दे दियें |

       जब देश का सारा सोना गिरवी पड़ा हुआ था | देश की आर्थिक व्यवथा पूरी तरह से चरमराकर अर्थी पर लेती हुई थी | जब देश का पूरा विदेशी जमा पूजी मात्र एक बिलियन यूएस डॉलर था और देश का क़र्ज़ चुकाने के लिए भारत की IMF के आगे सिर झुकना परा था,  तब उन्होंने राजनीतिक में नहीं, राजनीतिक व्यवस्था में एंट्री लिए | पीवी नरसिम्हा राव ने उन्हें वितमंत्री बनया | तब उन्होंने उदारवादी अर्थनीति  लागू करने का प्रस्ताव दिए तो उन्हें ये बोलकर मंजूरी दिया गया कि अगर यह व्यवस्था सफल हुई तो पूरा क्रेडिट सरकार को जायेगी और असफल हुआ तो सिर्फ और सिर्फ मनमोहन जी को | उन्होंने इस जिस का बिना कोई परवाह किये हाँ कर दिए और उसका रिज़ल्ट आज हमलोगों के सामने है | जिसकी वज़ह से आज ख़ुद पे  हम  चीन के बाद सबसे तेज़ विकसित हुई अर्थव्यवथा बोलते हुए गर्व करते हैं |
        जब देश दंगों के हालात से उबार रहा था | जब देश का जीडीप गर्त में था | राजनीतिक भूचाल मचा हुआ था तब उन्हें देश हित के लिए एक बार फ़िर से बलि का बकरा बनाया गया और वो बिना कुछ बोले इसके लिए तैयार हो गएँ और दस सालों तक भारत का पीएम रहें जो नेहरु के बाद सबसे लंबा कार्यकाल था |
   ऐसे सच में इतिहास उनके ख़ुद के शब्दों  में उनके साथ  थोड़ा नरमी बरता है और बरतेगा भी पर उन्होंने दस साल में बहुत महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए | हाँ, ये भी सच है कि उनकी दूसरी पारी घोटालों से पूर्ण पारी रहा पर उनके योगदान को भारत भील नहीं सकता | उन्होंने RTI दिया जो देश की जनता का सबसे बड़ा हथियार बना | मनेरगा दिया | फ़ूड सिक्यूरिटी बिल दिया | किसान का ८० हज़ार करोड़ का क़र्ज़ माफ़ कियें | जीडीपी दर को 9 प्रतिशत तक ले गएँ \
     उनके समय IIP [इंडस्ट्री इंडेक्स ऑफ़ प्रोडक्शन ] 11% रही जो मौजूदा २०१७ में -8% हो गयी हैं |
  उन्होंने जीडीपी को 9% तक ले गए थे और जाते- जाते 7.7% तक छोड़ गए थे जिसे मौजूदा सरकार ने 5% पे लाकर छोड़ दी हैं | नोत्बंदी को लेकर उनका अनुमान भी एकदम करेक्ट रहा | नोटबंदी के कारण 2% जीडीपी में गिरावट आई | 
    उनके समय पेट्रोल पर30 से  ३२% तक ही टैक्स था जो अब ५८% तक हो गयी हैं | जीएसटी का मैक्सिमम रेट उन्होंने 18% रखने का सुझाव दिया था पर मौजूदा सरकार ने २८% कर दिया|
     उनके समय नौकरी प्रति वर्ष 9 लाख क्रिएट हुयी और अभी 1.5 लाख हो रही हैं |
    उनके रहते हुए उतने उतने सैनिक नहीं मरे जितने आज मर रहे है | २०००७ में सिर्फ 12 सैनकों ने अपनी जान गावई थी जिसे भारत के इतिहास का पीसफुल इयर भी कहते हैं |
     ऐसे बहोत सारी चीज़े है जो वो बिना कुछ बोले देश हित में कर गए | हम उनके इस हित को नमन करते हैं |

  
 




 

Saturday 9 September 2017

भरात का मिजाज़ ये तो नहीं था !

नमस्कार,
काफी दिनों बाद आज लिख रहा हूँ | थोड़ी व्यस्तता थी तो लिख नहीं पा रहा था |
 आज मैं कुछ महत्वपूर्ण बातें, जो सोशल मीडिया पे  घटित हो रही है, उसी को लेकर अपना मिजाज़ रख रहा हूँ |
आज मैं विशेष उनलोगों के लिए लिख रहा हूँ, जो ख़ुद को सच्चा हिन्दू कहते हैं | ऐसे वोलोग हिन्दू के नाम पे सबसे बड़ा कलंक हैं | हिंदुत्व की 'ह' का भी उन्हें ज्ञान नहीं है | बस उनके अन्दर कट्टरता ने अपना जगह बना लिया है जबकि उन बेचारों को इतना भी नहीं पता हैं कि हिन्दू धर्म में कट्टरता का कोई स्थान नहीं हैं | यह शब्द हिन्दू धर्म के लिए बना ही नहीं हैं जो इस धर्म का सबसे बड़ा खूबसूरती हैं |
    और एक बात ये भी मजेदार है कि ये तथा-कथित सच्चा हिंदूवादी ख़ुद को सबसे बड़ा राष्ट्रवादी भी मानते है और साथ ही दूसरों के राष्ट्रवादी होने का प्रमाण-पत्र भी बाटते हैं | ये ख़ुद को देश का सच्चा बिल्डिंग ब्लाक भी बताते हैं और फेक न्यूज़ के आधार पर अपनी बिना-मूल्य वाला तर्क रखते हैं, जिसका कोई शिर होता है और ना ही कोई पाँव |
   ये बेरोजगार होते हुए भी बेरोजगार नहीं है | इनके पास एक काम है और वो हैं, बस एक बार आप पीएम या RSS की आलोचना कर के देख लीजिये, आपको पता चल जाएगा | ये आप पे गैंग-वार कर देंगे | पूरा का पूरा समूह गालियों का बौछार करने लगेंगे |मानों ऐसा लगता है कि पीएम इनके पुरखों की ज़ागिर्द है, जिस पर इनका पुस्तैनी हक़ हैं | हमारा तो पीएम है ही नहीं क्योकि हम जो इनसे राष्ट्रवादी का प्रामन-पत्र जो नहीं लये रहते हैं |
 खैर ये सब तो आप भी जानते हैं | दरअसल मैं ये बताना चाहता था कि जैसे कि आप जानते ही हैं कि दो दिन पहले ही एक कन्नड़ पत्रकार गौरी लंकेश की ह्त्या गोली मार के कर दी गयी |  इस पर मैंने अपना विचार फेसबुक पे रखा |फ़िर क्या था वो तथा-कथित राष्ट्रवादी मुझ पर अटैक करना शुरू कर दिए | तरह-तरह के फोटोशोप वाल कट-पिश पोस्ट करके इस ह्त्या को सही साबित करने में जुट गए और मुझे देशविरोधी तत्व शाबित करने में | एक ने तो यहाँ तक कह दिया कि गौरी ने बबूल का पेड़ बोई थी तो काटा चुभेगा ही | कुतिया कहने पे इतना बवाल क्यों मच रहा है |  मतलब SIT के पहले ही ये लोग जान गए कि इसका ह्त्या का कारण क्या था और ह्त्या करने वाला कौन है | आब समझ रहे हैं कि ये जान गए हैं कि "ह्त्या करने वाला कौन हैं", तभी न इतना एक्टिव हो कर इस ह्त्या को सही साबित करने में लगे है  |
  अपना देश का मिजाज़ तो ऐसा नहीं था जो आज ये लोग दिखा रहे हैं | हम तो किसी और मिजाज़ में पीला-बढ़े थें |
   ऐसे गौरी लंकेश के बारे में मैं भी नहीं जानता था | ऐसे हम साउथ को जानते कहाँ हैं !  पर उनके ह्त्या के बाद उनके बारे में पढ़ा | उनका आखरी कॉलम जिसे रविश जी ने हिंदी में अपने ब्लॉग 'कस्बा' में डाला था, उसे भी पढ़ा | वो गलत लिखती थी या सही, ये मुझे नहीं पता | पर वो बेबाक लिखती थी, निडर होकर | यही तो  जहाँ तक मैं समझता हूँ, पत्रकारिता का सुन्दरता हैं |  गौरी का विचारधारा जो भी हो, वामपंथी हो या दक्षिण पंथी | हम उनके बातों से असहमति जता सकते हैं | पर इस बात के लिए ह्त्या कर देना और उस पर  से इसे सही ठहराने की कोशिश करना !! ये कहाँ तक सही हैं ????????????
      अपना देश का मिजाज़ ऐसा नहीं था |
      गौरी हिन्दू विरोधी थी, फौजियों के सहादत पर जश्न मनाती थी, अकर्म थी, बकरम थी | मतलब जो ह्त्या हुआ वो सही हैं | उसका ह्त्या होना कोई ग़लत बात नहीं | ये तो देशभक्तों का काम हैं  जैसे नाथूराम के समर्थक नाथूराम को देशभक्त मानते हैं | ये तो गौरी को RSS का हत्यारा तक बतला दिया |

    इतना बीमार कोई कैसे हो सकता है | आख़िर कैसे ???????????????????????????
  बस यही दुआ करूंगा कि ये लोग ज़ल्द से ठीक हो जाए |
गेट वेल सून !!!     

Sunday 10 July 2016

टू रवीश कुमार

नमस्कार रवीश जी,
सोशल मीडिया और ब्लॉग के जमाने में भी खुला पत्र काफी ट्रोल कर रहा है और ये खुला पत्र किसी कागज़ पर नहीं बल्कि इसी डिजीटल प्लेटफॉर्म पर लिखा जा रहा हैं । हाँ सर, अब उस बंद लिफ़ाफ़े में छिपी पत्रों का क्या महत्व, इस तथा कथित पारदर्शिता जमाने में । अब मर्ज़ों को छिपाना क्या !
 ख़ैर जो भी हो । खुला पत्र लिखना कोई नयी बात नहीं । ये उस समय भी था जब कोई डिज़िटल प्लेटफॉर्म नहीं था  । और हाँ इस डिजिटल प्लेटफॉर्म का ही उपयोग कर खुला पत्र को नए बनाये रखने का श्रेय आपको ही जाता हैं ।
मैं आपका  हर खुला पत्र पढ़ता हूँ । जी हाँ, मैं क़स्बा का डेली रिडर हूँ । 
ऍम जे अकबर के नाम लिखा आपका खुला पत्र भी पढ़ा । जितने उत्साह के साथ मैंने इस पत्र को पढ़ने का शरुवात किया था, ठीक उतना ही मायूस होता गया । पत्र के शब्दों को लेकर , कुछ सोच को लेकर और आप के गुस्से को लेकर ।
जी पता है, हम बिहारी काफ़ी भावुक होते है और आपभी इसी भावुकता का शिकार होते हुए अपना गुस्सा ज़ाहिर किये हैं और गुस्सा ज़ायज़ भी है पर एक खुले पत्र में किसी और का सहारा लेकर ।  भराष् निकल गयी अच्छी बात है ।

आपके इस पत्र से एक चीज़ और पता चला । रोहित सरदाना जी की सोच । उनका भक्तिपन । और रोहित जी के शब्दों में ही रोहित जी का राष्ट्रवाद । अच्छा है कोई तो पत्रकार राष्ट्रवादी निकाला वरना यहाँ सब !!
काफ़ी विन्रमता से रोहित जी ने कुछ पत्रकारों पर कीचड़ उछाल दिए जिनमे आजतक के पत्रकार पूण्य प्रसणुय वाजपेयी जी भी हैं ।
चलिए "इज़ इक्वल टू" की बात रोहित जी ने तो कर दी । आपने उस समय ऐसा चिट्ठी क्यों नहीं लिखा ? अभी आप ये चिट्ठी कैसे लिख सकते है जब रोहित जी की मनपसंद सरकार हो या उस समय जो सत्ता की दलाली कर रहा हो । आप ने  ऐसा क्यों किया ? इसका ज़बाब तो आपको देना ही होगा !
 और हां सर आपने बरखा दत्त को चिट्ठी नहीं लिखी ये समझ सकता हूँ पर सुधीर चौधरी जी को तो लिखना चाहिए ।
आशा करता हूँ आपका अगला खुला पत्र सुधीर जी और रोहित जी के नाम होगा ।

आपका
अनिल






Sunday 3 July 2016

राजनीति के चाणक्य सलीम (योगेन्द्र ) यादव का सच डा.राकेश पारिख के जुबानी

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योगेन्द्र यादव, आन्दोलन से निकली आम आदमी पार्टी का एक जाना माना चेहरा है. इस जन आन्दोलन को राजनैतिक दिशा देने में उनकी बहोत बड़ी भूमिका रही. आन्दोलन में अधिकतर लोग ऐसे थे जो राजनीति से नफ़रत करते थे. 3 अगस्त 2012 को जब अन्ना हजारे ने आन्दोलन को समाप्त कर राजनैतिक विकल्प देने की घोषणा की तब कई कार्यकर्ता इस निर्णय से खुश नहीं थे, जिनमे मैं भी एक था. राजनीति में जाने का निर्णय मैंने कैसे लिया इस पर फिर कभी लिखूंगा लेकिन उसमें बहोत बड़ी भूमिका योगेन्द्र यादव की थी. वैकल्पिक राजनीति का जो चित्र उन्होने दिखाया उसी से प्रभावीत होकर मैंने इस राजनैतिक आन्दोलन में सहयोग करने का निर्णय लिया.
लोकसभा चुनावो के दौरान आम आदमी पार्टी के खिलाफ धड़ल्ले से कुप्रचार किया गया. कई नेताओ पर  बचकाने आरोप लगे. पूरी कोशिशो के बाद भी किसी  नेता पर कोई भ्रष्टाचार, अपराधिक मामले या चरित्र से सम्बंधित आरोप नहीं लगा पाया. अचानक किसी मित्र से सुना की चुनावी सभाओ के दौरान योगेन्द्र यादव मेवात इलाके में खुद का नाम सलीम बताते थे और हिन्दू इलाके में खुद को यदुवंशी बताते थे. . योगेन्द्र यादव को जितना मैं जानता था, उसमे मुझे यह बात हज़म नहीं होती थी. वो केवल चुनावी नतीजो के भविष्यवक्ता नहीं थे, चुनाव सुधार पर उनके विचार सुनने योग्य है. जाती और धर्म के आधार पर, अपराधियो और धन के सहारे चलने वाली राजनीति को बदलना इस राजनैतिक पार्टी को बनाने का एक मुख्य उद्देश था. पूछने वाले मित्रो से मैंने इतना ही कहा की मुझे वो विडियो दिखाओ जिसमे योगेन्द्र यादव ने ऐसा कुछ कहा हो लेकिन मुझे ऐसा कोई विडियो कभी मिला नहीं.
उस समय राजस्थान में चुनावो की बड़ी जिम्मेदारी हाथ में होने के कारण मैंने इस विषय पर अधिक ध्यान नहीं दिया. चुनाव समाप्त होने के बाद जो राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई, उसमे मैं गया. प्रशांत भूषण के जंगपुरा स्थित निवास पर बेसमेंट में बैठक हो रही थी. योगेन्द्र यादव का मैं बहोत सम्मान करता हु लेकिन इतना बड़ा आरोप यदि है तो उसका स्पष्टीकरण खुद योगेन्द्र यादव से मांगना मैंने सही समझा. दोपहर भोजन के दौरान मौका देखकर मैं उनके पास गया. बड़ी नम्रता से मैंने उन्हें बताया की वैकल्पिक राजनीति को लेकर आपकी जो सोच है उससे प्रभावित होकर ही मैंने राजनीति में आने का निर्णय लिया. लेकिन आप पर यदि राजनैतिक लाभ के लिए अपने आप को सलीम बताये तो मुझे दुःख होता है. क्या यह आरोप सही है? क्या आपका नाम सलीम है?
उन्होने  जवाब दिया हाँ, मेरा बचपन का नाम सलीम है. मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैंने पूछा यह कैसे संभव है, आप तो हिन्दू है. योगेन्द्रजी ने बड़ी शांति से अपनी शैली में जवाब दिया –
“मेरे दादा श्री रामसिंह जी, हिसार के एक स्कुल मेंहेडमास्टर और हॉस्टल के वार्डन थे। 1936 में वहा सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। कुछ दंगाई हॉस्टल आ पहुंचे। वो हॉस्टल के बच्चो को मारना चाहते थे। दादाजी दंगाइयो के सामने खड़े हो गए और कहा की बच्चो को मारने से पहले आपको मुझे मारना होगा। दंगाइयो के सर पर खून सवार था। उन्होनेगर्दन कांट कर मेरे दादाजी की हत्या कर दी। हत्या करने के बाद वो लोग बच्चो पर हमला किये बगैर चले गए। यह घटना मेरे पिताजी की आँखो के सामने हुई. उनकी उम्र उस समय लगभग 8 साल थी. इस दंगे की खबर उस समय के ट्रिब्यून अखबार में छपी थी. ”
“देश आजाद हुआ। सारा देश आजादी की खुशिया मना रहा था। और दूसरी तरफ 19 साल की उम्र में मेरे पिता फिर एक दंगे के गवाह बने। बंटवारे की आग में जहा पाकिस्तान में हिन्दु मारे जा रहे थे, सरहद के इस पार उनकी आँखो के सामने मुसलमानो का कत्लेआम हुआ। इन दोनो घटनाओ का उनके बाल मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। मेरे पिता प्रोफेसर देवेन्द्र सिंह गांधीवादी थे। धर्म के नाम पर इन्सान को इंसानो की हत्या करते देखा था, हैवान बनते देखा था। इस नफ़रत का जवाब गांधीवादी तरीके से देने का उन्होने निर्णय लिया और तय किया की मैं अपने बच्चो को मुस्लिम नाम दूंगा। साम्प्रदायिक हिंसा के जवाब में उन्हें कौमी एकता की मिसाल पेश करनी थी।”
“1957 में मेरी सबसे बड़ी बहन का जन्म हुआ। पिताजी ने उसका नाम नजमा रखा। लेकिन माँ को ये मंजूर नहीं था। उसे चिंता थी बेटी की शादी की। नजमा का नाम नीलम हो गया। 4 साल बाद मेरी छोटी बहन का जन्म हुआ और उसका नाम पूनम रखा गया। 1963 में अपने बेटे को मुस्लिम नाम देने की उनकी इच्छा पूरी हुई। मेरा नाम सलीम रखा गया। मेरी माँ, पत्नी, बचपन के मित्र आज भी मुझे इसी नाम से पुकारते है।”
“5 साल की उम्र में मैं स्कुल जाने लगा.  वहा मुझे पता लगा की मेरे नाम में कुछ तो गलत है। बच्चे मुझसे पूछते मैं हिन्दू हु या मुसलमान? मेरे माता पिता हिन्दू है मुसलमान? मेरा नाम स्कुल के बच्चो के लिए मजाक बन गया था। रोजाना वही सवाल सुनकर मैं तंग आ गया। और तब मेरा नाम योगेन्द्र रखा गया। ”
यह सुनते वक्त फिल्मोमें देखे हुए सांप्रदायिक दंगो के दृश्य मेरी आँखों के सामने आ गए. ऐसी स्थिति में अपने आप को उनके पिताजी की जगह रख कर देखू तो शायद मैं अपने आप को दंगाई बनने से न रोक पावू.
सलीम का यह सच सचमुच दिल को छू गया। उनके पिता एक सच्चे गांधीवादी थे जिन्होने गाँधी को केवल पढ़ा या भाषणो में सुनाया नहीं बल्कि अपने जीवन में उतारा। योगेन्द्र जी ने भी अपने बेटे का नाम पेले रखा और बेटी का सूफी धर्मा। उनके भांजे का नाम समीर फिरोज है।
चाहे जो भी हो, सलीम (योगेन्द्र) यादव को इस बात का राजनैतिक लाभ नहीं उठाना चाहिए। आरोप लगे थे की वो हिन्दू इलाको में खुद को यदुवंशी बताते थे और मुस्लिम इलाको में सलीम।
जवाब में योगेन्द्रजी ने कहा –
” यदि मुझे इस तरह की राजनीति करनी पड़े तो मेरा राजनीति में आना ही बेकार है। इसी राजनीति को बदलने के लिए हमने पार्टी बनाई। मैंने कही भी और किसी भी चुनावी सभा में इस बात का उल्लेख नहीं किया। मेरे सभी चुनावी भाषणो की विडियो किसी न किसी मीडिया के पास उपलब्ध है। उनमें से एक भी ऐसा विडियो दिखा दो जहा मैंने खुद के जाती या नाम का उल्लेख भी किया हो। मैंने उस समय भी प्रेस कांफ्रेंस कर विरोधियो को खुली चुनौती दी थी। आज दोबारा कह रहा हु। मेरे सभी विरोधियो को चुनौती है इस आरोप को साबित करो वरना इस तरह की ओछी राजनीति को रोको।”
यह पूरी तरह निराधार, घटिया किस्म का आरोप बड़ी तेजी से फैलाया गया। प्रभाव इतना तेज था की आज भी पार्टी के भी कई कार्यकर्ता इसे सच मानते है।
योगेन्द्रजी ने इस घटना का जिक्र पहली बार मीडिया में तब किया जब उनके खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाकर अफवाह उड़ाई गई. जिस परिवार ने सांप्रदायिक दंगो की आग को सहा हो, सामाजिक उपेक्षा की परवाह किये बगैर कौमी एकता की मिसाल रखी हो, जिन्होने खुद आजीवन साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई लड़ी हो, उनपर ऐसे आरोप लगाना निश्चित शर्मनाक है. मन में बड़ी ग्लानी हुई। मैंने भी जाने अनजाने पार्टी के मित्रो के साथ इस बात का उल्लेख किया होगा और इस अफवाह को फ़ैलाने के पाप का भागीदार बना।
मैं अपना पश्चाताप कर रहा हु। यह सच्चाई हजारो लोगो तक इस ब्लॉग के माध्यम से पहुंचा कर। यदि आप योगेन्द्र यादव पर लगे आरोपो को सच मानते है, तो सबुत दीजिये (जिन्हें खोजना बहोत आसान है क्योँकि उनकी सभी सभाओ की विडियो रिकॉर्ड उपलब्ध है) वरना मेरी सलाह है, मेरी तरह पश्चाताप करे इस लेख को कमसे कम हज़ार लोगो तक पहुंचा कर। जीतनी तेजी हमने अफवाह फैलाई उतनी ही तेजी से सच्चाई भी फैलाये।
संभव है इस कहानी को पढने के बाद भी आपको इस पर विश्वास न हो. ऐसे मित्रो से निवेदन है की तथ्यो को खुद जान ले. योगेन्द्रजी के पिता श्री गंगानगर, राजस्थान के खालसा कॉलेज में पढ़ाते थे. वहाँ अधिकतर लोग योगेन्द्रजी को सलीम के नाम से जानते है. श्री गंगानगर की विनोबा बस्ती, जहां उनका बचपन बिता, वहाँ भी उनके पडोसी सलीम को ही जानते है.|


नोट : काफी दिन पहले अपना पहला ब्लॉग www.anilkary.blogspot.in पर भी ये लिखा था | राकेश पारिख के कलमों से निकली हुई ये शब्द हैं | अच्छा लगा तो अपने ब्लॉग पे शेयर किया | सच्चाई आख़िर सबको पता होना चाहिए |